जिंदगी जटिल है या आसान? क्या हम खुद ही अपनी जिन्दगी को जटिल बनाते हैं? इस बारे बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा है पर थायलैंड के किसान जोन जंदाई का मत काफी भिन्न है। उनके कहने में सादगी भी है और सच्चाई भी। यह अलग बात है कि जिस आसानी की बात वे कह रहे हैं वह बहुत आसान लगने के साथ साथ बहुत कठिन भी है।
जोन जंदाई उत्तर पूर्व थायलैंड के एक किसान हैं जिन्होंने 2003 में, अपनी पत्नी पैगी रीनट्स के साथ मिल कर, ‘पुन पुन’ की स्थापना की। ‘पुन पुन’ चियांग माई नामक शहर के पास स्थित एक जैविक फार्म है। जोन स्थानीय संसाधनों की मदद से प्राकृतिक घर बनाने के लिए जाने जाते हैं और पूरे थायलैंड में वे इस विधा के बारे लोगों को जागृत करते आए हैं। वे जिंदगी जीने के आसान तरीकों की खोज में लगे रहते हैं ताकि सभी लोग अपनी मूलभूत जरूरतों को आसानी से पूरा कर सकें। उन्होंने अपने फार्म में मिट्टी का पहला घर 1997 में बनाया। 2002 से वे यह विधा औरों को भी सिखा रहे हैं। पुन पुन के बारे में अधिक जानकारी उनकी वेबसाईट http://www.punpunthailand.org/ में उपलब्ध है।
यह जरूरी नहीं की हम जोन जंदाई की कही हर बात को मानें। हमारे निजी विचार बहुत भिन्न हो सकते हैं। जरूरत जोन जंदाई की कही बातों के विश्लेषण करने की नहीं अपितु उसमें से अपने लिए कुछ निचोड़ निकालने की है। उनकी कही बहुत सारी बातें संवाद के अलग अलग पहलू खोलती हैं।

जोन जंदाई का मूल वक्तव्य अंग्रेजी में है जिसे उन्होंने एक टैड टॉक के दौरान व्यक्त किया। उस यूट्यूब विडियो का लिंक लेख के अंत में साझा किया गया है। क्योंकि उनकी कही बातों पर चिंतन किया जाना चाहिए इसलिए उनके वक्तव्य का हिन्दी अनुवाद ज्ञानिमा से माध्यम से साझा कर रहे हैं।
जोन जंदाई का वक्तव्य
“एक बात है जो मैं हमेशा से कहना चाहता हूँ, उन सबसे जो मेरी जिंदगी में है, वो यह है कि ‘जिंदगी आसान है’। जिंदगी मज़ेदार है। पहले में ऐसा नहीं सोचता था। जब मैं बैंकॉक गया तो मुझे लगा की जिंदगी बहुत कठिन और जटिल है।
मेरा जन्म उत्तरपूर्वी थायलैंड के एक गरीब गाँव में हुआ था। जब मैं बच्चा था तब सब कुछ मज़ेदार और आसान था। पर जब गाँव में टीवी पहुँचा तब गाँव में बहुत लोग आए जिन्होंने कहा, “तुम गरीब हो। तुम्हें अपने जीवन में सफलता हासिल करनी है। तुम्हें सफलता पाने के लिए बैंकॉक जाना होगा।“
मुझे बुरा लगा। मुझे लगा की मैं गरीब हूँ इसलिए मुझे बैंकॉक जाना चाहिए। पर जब मैं बैंकॉक गया तो मुझे वहाँ मज़ा नहीं आया। मुझे पता लगा की सफलता के लिए बहुत लिखना पढ़ना पड़ता है और काम में बहुत मेहनत करनी पड़ती है।
मैंने बहुत मेहनत की। दिन में कम से कम आठ घंटे काम किया। पर खाने के लिए मुझे एक प्लेट नूडल या फ्राइड राइस या उस जैसा ही कुछ नसीब हुआ। जिस कमरे में मैं रहता था वह भी बहुत बुरा था। वह एक छोटा सा कमरा था जहाँ बहुत सारे लोग सोते थे। वहाँ बहुत गर्मी भी थी।
तब मैं सवाल करने लगा। अगर मैं इतनी मेहनत करता हूँ तो मेरी जिंदगी आसान क्यों नहीं है। कुछ तो गलत है क्योंकि मैं बनाता/करता तो बहुत कुछ हूँ पर मुझे कुछ खास नहीं मिलता। मैंने यूनिवर्सिटी में भी पढ़ने सीखने की कोशिश की। यूनिवर्सिटी में कुछ सीख पाना बहुत कठिन है क्योंकि वह पढ़ाई बहुत उबाऊ है।
मैंने जब यूनिवर्सिटी में पढ़ाए जाने वाले के विषयों को देखा, सभी डिपार्ट्मेंट में, तो पाया कि वह विध्वंसकारी ज्ञान हैं। मेरे लिए वहाँ कुछ भी रचनात्मक नहीं था। मैंने समझा की जब आप पढ़ कर इंजीनियर या आर्किटेक्ट बनते हैं तो आप बर्बादी ज्यादा करते हैं। यह लोग जितना काम करेंगे उतने पहाड़ उजड़ेंगे। ‘चाओ प्राया’ घाटी की अच्छी जमीन कॉन्क्रीट से पट जाएगी। हम विध्वंस ज्यादा करेंगे।
अगर हम कृषि या उससे संबंधित कुछ पढ़ेंगे तो हम यह सीखेंगे की कैसे भूमि को विषाक्त किया जाता है, कैसे जल को प्रदूषित किया जाता है। कैसे हर चीज को नष्ट किया जाता है। मुझे लगता है हम जो कुछ भी करते हैं वह कितना कठिन और जटिल है। और कैसे हम जटिलता बढ़ाते जाते हैं।
मुझे यह जान कर निराशा हुई की जीवन इतना जटिल बन गया है।
मैं यह सोचने लगा कि मुझे बैंकॉक में क्यूँ रहना है? मैं अपने बचपन के बारे में सोचने लगा जब कोई भी दिन के आठ घंटे काम नहीं करता था। लगभग सभी लोग दिन में दो घंटे काम करते थे, वह भी साल के दो महीने – एक महीना धान की बुआई के लिए और एक महिना घान की कटाई के लिए। बाकी दस महीने, सारा समय, हम आज़ाद रहते थे। इसीलिए थायलैंड में इतने त्योहार होते हैं। हर महीने एक त्योहार। यह सब इसलिए क्योंकि लोगों के पास काफी समय होता था। दिन में लगभग सभी लोग थोड़ी देर के लिए सो जाते थे।
आज भी लाओस में लोग दिन के भोजन के बाद सोते हुए मिल जाते हैं। और जब वे उठते हैं तो गपशप मारते हैं, अपने दामाद के बारे में, अपनी पत्नी के बारे में, अपनी बहु के बारे में। क्योंकि लोगों के पास बहुत समय होता है इसलिए वे खुद के लिए भी समय निकाल पाते हैं।
और जब उनके पास अपने लिए समय होता है तो उन्हें खुद को समझने का मौका मिलता है। और जब वे खुद को समझते हैं तब जान पाते हैं की उन्हें जीवन में क्या चाहिए। बहुत लोग जान पाते हैं कि उन्हें जीवन में खुशी चाहिए। उन्हें जीवन में प्यार चाहिए। वे जीवन का आनंद लेना चाहते हैं। इसलिए वे अपने जीवन में सौन्दर्य देख पाते हैं। और वे उस सौन्दर्य को अलग अलग तरह से व्यक्त भी करते हैं। कुछ लोग चाकू के हत्थे पर नक्काशी करते हैं तो कुछ लोग सुंदर टोकरियाँ/डलिया बनाते हैं। पर अब यह सब कोई नहीं करता। लोग यह सब करने के काबिल भी नहीं रहे। इसलिए हर कोई प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है।
इन सब की वजह से मुझे लगा की कुछ गलत हो रहा है और मैं इस तरह से जिंदगी नहीं जी सकता। इसलिए मैंने यूनिवर्सिटी छोड़ दी और वापस घर चल आया।

जब मैं घर पहुँचा तो वैसे ही रहने लगा जैसे मैं तब रहता था जब मैं बच्चा था। मैं महीने में दो महीने काम करने लगा। मैंने चार टन धान का उत्पादन किया। मेरे परिवार में छह सदस्य हैं और हम साल में आधा टन घान खाते हैं इसलिए हम बाकी धान बेच सकते थे।
फिर मैंने मछली पालने के लिए दो तालाब बनाए। अब हमारे पास खाने के लिए पूरे साल मछलियाँ रहती थी। मैंने एक छोटा सा बगीचा बनाया – आधे एकड़ से कम जमीन पर। मैं उस बगीचे में हर रोज पंद्रह मिनट काम करने लगा। बागीचे में तीस से अधिक तरह की सब्जियाँ उगने लगीं। क्योंकि छह लोग इतना नहीं खा सकते इसलिए हम बाकि सब्जियाँ बाजार में बेचने लगे। वहाँ से भी हमारी कुछ आय होने लगी।
तब मुझे लगा की यह सब कितना आसान है। मैं सात साल बैंकॉक में रहा, कड़ी मेहनत की और तब भी मेरे पास भरपेट खाने को नहीं होता था। पर यहाँ साल के दो महीने और हर रोज पंद्रह मिनट लगा कर मैं आसानी से छह लोगों को खिला सकता था। कितना आसान है यह सब।
मैं पहले सोचता था की मेरे जैसे बेवकूफ लोग जो स्कूल में अच्छे अंक भी नहीं ला पाते, वे कैसे अपने लिए मकान बना पायेंगे। मेरे होशियार साथी, जो हर साल बहुत अच्छे अंक लाते थे, जिनके पास अच्छी नौकरी है, उन्हें अपना घर बनाने के लिए 30 साल नौकरी करनी पड़ती है। तो मैं, जिसने यूनिवर्सिटी की शिक्षा पूरी भी नहीं की, वह कैसे घर के सपने देख सकता है। कम शिक्षित लोगों के लिए यह एक बहुत दयनीय स्थिति है।
पर फिर मैं मिट्टी का घर बनाने लगा। वह बहुत आसान था। मैं हर सुबह दो घंटे, पाँच से सात बजे, इस काम में व्यतीत करने लगा और तीन महीने में मेरा घर बन गया।
मेरा एक मित्र जो कक्षा में सबसे बुद्धिमान था, उसने भी तीन महीने में अपना घर बनाया। पर उसके लिए उसे उधारी में जाना पड़ा। अब उसे तीस सालों तक वह कर्ज चुकाना होगा। उसके मुकाबले मेरे पास उन्तीस साल और दस महीने का खाली समय है। इसलिए मुझे लगता है कि जिंदगी आसान है।
मुझे कभी नहीं लगा था कि मैं इतनी आसानी से घर बना पाऊँगा। अब मैं लगभग हर साल एक घर बनाता हूँ। मेरे पास पैसे नहीं हैं पर बहुत सारे घर हैं। मेरी चिंता यह है की आज की रात मैं किस घर में सोऊँ।
तो घर भी समस्या नहीं है। कोई भी घर बना सकता है। 13 साल के स्कूली बच्चे भी मिलजुल कर मकान बना सकते हैं। एक महीने में उनका पुस्तकालय तैयार हो जाएगा। बच्चे घर बना सकते हैं। एक बुढ़िया योगिन घर बना सकती है। बहुत लोग घर बना सकते हैं। यह सब बहुत आसान है। अगर आपको मेरी बात पर यकीन नहीं है तो खुद आजमा कर देख लीजिएगा, अगर आपको घर चाहिए तो।
अगला मसला पहनने के कपड़ों का है। मुझे लगता है कि मैं गरीब हूँ। मैं हैन्डसम नहीं हूँ। मैं किसी अन्य, जैसे फिल्म स्टार, की तरह कपड़े पहनना चाहता हूँ ताकि मैं अच्छा और बेहतर लग सकूँ। मैंने एक महिना पैसा बचा कर जीन्स पैन्ट खरीदी। उसे पहन कर मैं अपने को कभी दाएँ से तो कभी बाएँ से आईने में देखता हूँ। हर बार जब मैं खुद तो देखता हूँ तब भी मैं वही व्यक्ति होता हूँ जो मैं हूँ। सबसे महंगी पैन्ट भी मेरा जीवन नहीं बदल सकती। तब मुझे लगता है कि क्या मैं पागल हूँ जो मैंने यह खरीदा? एक महीने की बचत मैंने एक पैन्ट में लगा दी पर वह मुझे बदल नहीं पायी।
मैं इस बारे में और सोचने लगा। मैं सोचने लगा की मुझे फैशन करने की क्या जरूरत है? क्योंकि हम फैशन के पीछे पड़े रहते हैं, वो कभी हमारे हाथ नहीं आता। तो फिर क्यों पीछा करना। हम वैसे ही क्यों नहीं रह लेते जैसे हम हैं। उस सबका इस्तेमाल करते हुए जो हमारे पास है।
यह सब सोचने के बाद मैंने कभी कपड़े नहीं खरीदे। इस बात को बीस साल हो गए। मेरे सारे कपड़े औरों के दिए पुराने कपड़े हैं। जब लोग मुझसे मिलने आते हैं तो वे जो कपड़े पीछे छोड़ जाते हैं मैं उसे ही पहन लेता हूँ। अब मेरे पास बहुत सारे कपड़े हैं।
जब लोग मुझे पुराने कपड़े पहने हुए देखते हैं तो वे नए कपड़े दे जाते हैं। अब मेरी मुसीबत यह है कि अक्सर औरों को कपड़े बाँटने पड़ते हैं।
यह सब कितना आसान है।
जब मैंने कपड़े खरीदने बन्द किए तब जाना की यह बात केवल कपड़ों की नहीं है। मैंने समझा की अगर मुझे कुछ खरीदना है तो मुझे उसके बारे में सोचना है। मैं सोचने लगा कि अगर मुझे कुछ खरीदने का मन है तो वह इसलिए है कि वह मुझे पसंद है या इसलिए कि मुझे वह चाहिए। मैं अगर कुछ इसलिए खरीदना चाहता हूँ कि वह मुझे पसंद है तो मैं जानता हूँ कि मैं गलत हूँ। इस तरह की सोच रख कर मुझे ज्यादा आजादी महसूस होती है।
आखिरी पहलू बीमारी है। अगर मैं बीमार पड़ जाऊँ तो क्या करूँ? शुरू में मैं इस बात को लेकर बहुत चिंतित रहता था कि अगर मेरे पास पैसा नहीं होगा तो क्या करूँगा। मैं इस बारे में काफी सोचने लगा। फिर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि बीमारी एक बुरी चीज नहीं बल्कि एक सामान्य चीज है। बीमारी बताती है कि हमने जिंदगी में कुछ गलत किया है जिस कारण हम बीमार पड़ गए। इसलिए अगर मैं बीमार पड़ जाऊँ तो मुझे रुक कर आत्मविश्लेषण करना चाहिए की मैंने क्या गलत किया है।
मैंने खुद को स्वस्थ करने के लिए सीखा कि मैं कैसे पानी की मदद ले सकता हूँ। मैं कैसे प्रकृति की मदद ले सकता हूँ। मैं कैसे कुछ मूल ज्ञान की मदद से खुद को स्वस्थ कर सकता हूँ।
अब मैं अपने भोजन, छत, कपड़े और स्वास्थ के लिए आत्मनिर्भर हूँ जिसके कारण मुझे लगता है कि जिंदगी कितनी आसान है। मुझे आजादी का अनुभव होता है। मुझे लगता है की मुझे किसी चीज की चिंता करने की जरूरत नहीं है। इसलिए मुझे डर कम लगता है। मुझे लगता है कि मैं अपने जीवन में जो चाहूँ वह कर सकता हूँ।
पहले मैं बहुत डरता था। मैं कुछ नहीं कर पाता था। क्योंकि अब मैं आजाद महसूस करता हूँ मुझे लगता है मैं दुनिया में अनूठा हूँ। मेरा जैसा और कोई नहीं है। मुझे किसी और सा होने की कोई जरूरत नहीं है। मैं अव्वल हूँ।
इस तरह की सोच चीजों को आसान करती है। मैं हल्का महसूस करता हूँ। मैं जब बैंकॉक में था तो मुझे जीवन अंधकारमय लगता था। मुझे लगता है कि बहुत और लोग भी ऐसा ही महसूस करते होंगे। इसलिए हमने चियांग माई में ‘पुन पुन’ नामक जगह बनाई। हमारा मुख्य लक्ष्य है बीज बचाना। हम बीज इकट्ठे करते हैं क्योंकि बीजों से भोजन मिलता है और भोजन हमें जीवन देता है। अगर बीज न रहे तो जीवन भी नहीं रहेगा। अगर बीज नहीं रहे तो आजादी भी नहीं रहेगी। बीज नहीं रहे तो खुशी भी नहीं रहेगी। क्योंकि बीजों के बिना आपका जीवन किसी और पर निर्भर हो जाएगा। इसलिए बीज बचाने बहुत जरूरी है। इसीलिए यह ‘पुन पुन’ में हमारा मुख्य उद्देश्य है।
हमारा दूसरा कार्य है अध्ययन केंद्र चलाना। हम ऐसा केंद्र चाहते हैं जहाँ हम खुद सीख सकें की जिंदगी को आसान कैसे बनाया जाए। यह इसलिए जरूरी है क्योंकि हमें हर समय यही सिखाया जाता है की जिन्दगी को कैसे जटिल और कठिन बनाया जाए।
कैसे बनाएँ आसान जिन्दगी? जिन्दगी तो दरअसल आसान ही है पर हम उसे आसानी से जीना भूल गए हैं। इसलिए हम मिलजुल कर सीख सकते हैं की कैसे जिन्दगी को वापस आसान बनाया जाए।
हमें सिखाया जाता है कि कैसे हम सभी चीजों से अपने संबंध तोड़ें, कैसे आजाद रहना छोड़े, ताकि हमारी निर्भरता केवल पैसे पर हो। कि कैसे हम एक दूसरे पर निर्भर रहना छोड़ें। पर अगर हमें खुश रहना है तो हमें वापस मुड़ना होगा, खुद से जुड़ना होगा, लोगों से संबंध स्थापित करने होंगे और अपने शरीर व मस्तिष्क को साथ लाना होगा। ताकि हम खुश रह सकें और आसान जिन्दगी जी सकें।
शुरू से लेकर अब तक हमने यही सीखा है कि खाना, छत, कपड़े और दवाई सबके लिए सुलभ और सस्ते होने चाहिए। यही मानव सभ्यता है। पर अगर यह चीजें सुलभ नहीं हैं, लोगों के लिए उन्हें पाना कठिन है तो वह असभ्यता है। जब मैं चारों ओर देखता हूँ तो महसूस करता हूँ सभी चीजें कितनी असुलभ है। इसलिए मुझे लगता की हम मानवता से सबसे असभ्य दौर से गुजर रहे हैं।
इतने सारे लोग यूनिवर्सिटी से पढ़ कर निकल रहे हैं। दुनिया में इतनी सारी यूनिवर्सिटियाँ हैं। दुनिया में इतने सारे बुद्धिमान लोग हैं। पर जिन्दगी और कठिन होती जा रही है। हम किसके लिए जिन्दगी को कठिन बना रहे हैं? हम मेहनत किसके लिए करते हैं?
मुझे लगता है यह सब सामान्य नहीं है। यह गलत है। मैं बस इतना चाहता हूँ की स्थिति सामान्य हो जाए। हम सामान्य इन्सान हो जाएँ, किसी भी अन्य जीव के समान। चिड़िया एक दो दिन में अपना घोंसला बना लेती है। चूहा एक रात में अपना बिल खोद लेता है। पर हमारे जैसे बुद्धिमान इन्सान एक मकान को अपना बनाने में तीस साल लगा देते हैं। और बहुत लोग तो यह मानते हैं की वे इस जीवनकाल में अपनी छत बना ही नहीं सकते। यह बहुत गलत है।
हम क्यों अपनी आत्मा और योग्यता को यूँ खत्म कर रहे हैं? मेरे लिए इस असामान्य स्थिति में रहना संभव नहीं है इसलिए मैं जिन्दगी को यथासंभव सामान्य बनाने की कोशिश करता रहता हूँ। लोगों को लगता है मैं असामान्य हूँ, पागल हूँ, पर मुझे फर्क नहीं पड़ता क्योंकि यह मेरी गलती नहीं है। यह उनकी गलती है जो ऐसा सोचते हैं।
अभी मेरी जिन्दगी आसान है। मैं हल्का महसूस करता हूँ। यह मेरे लिए काफी है। लोगों को जो सोचना है वो सोचें। मैं अपने अलावा किसी भी चीज को नियंत्रित नहीं कर सकता। मैं केवल अपना मन बदल सकता हूँ, अपने मस्तिष्क को नियंत्रित कर सकता हूँ। अब मेरा मन हल्का महसूस करता है और मेरे लिए वह काफी है।
अगर किसी को विकल्प चाहिए तो विकल्प हैं। विकल्प कठिन हैं या आसान यह केवल आप पर निर्भर करता है।
धन्यवाद!”
जोन जंदाई का मूल विडियो
- गिर्दा की दास्तान - 20/08/2025
- स्टीव कट्टस की जरूरी फिल्में - 15/01/2023
- जिन्दगी आसान है! - 03/01/2023
वास्तव में बहुत ही जरूरी बात कही है जॉन जंदाई ने. हमने जीवन को इतना उलझाऊ बना दिया है कि लगने लगा है जो जितनी जटिल जिंदगी जिए वो अधिक सफल है. आज सरल होना ही सबसे कठिन हो चुका है.